2021-04-04 07:07
नापासर टाइम्स।आज 4 अप्रैल है. आज शीतला अष्टमी है. शीतला अष्टमी व्रत मां शीतला देवी को समर्पित है. शीतला अष्टमी के दिन भक्त मां शीतला की पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं ताकि उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिल सके. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है और चेचक जैसे संक्रामक रोग में भी मां भक्तों की रक्षा करती हैं.
*शीतला मां देती हैं कष्टों से मुक्ति :-*
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार जो भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा-अर्चना और यह व्रत करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है. रोगों से भी मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं.
*शीतला मां पूजा विधि:-*
व्रत वाले दिन यानी कि शीतलाष्टमी को सुबह ही नित्यकर्म और स्नान के बाद मां की पूजा के दौरान उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. इसके बाद यह खाना ही प्रसाद के तौर पर घर के अन्य सदस्यों को दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है और कलश में धन कुबेर का वास होता है. माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं.
*शीतला अष्टमी की कथा :-*
पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे. दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं. दोनों बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए थे. इतने में शीतला सप्तमी (जहां अष्टमी को पर्व मनाया जाता है वे इसे अष्टमी पढ़ें) का पर्व आया. घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया. दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा भोजन लेंगी तो बीमार होंगी,बेटे भी अभी छोटे हैं. इस कुविचार के कारण दोनों बहुओं ने तो पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली. सास-बहू शीतला की पूजा करके आई,शीतला माता की कथा सुनी.
बाद में सास तो शीतला माता के भजन करने के लिए बैठ गई. दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आई. दाने के बरतन से गरम-गरम रोटला निकाले,चूरमा किया और पेटभर कर खा लिया. सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा. बहुएं ठंडा भोजन करने का दिखावा करके घर काम में लग गई. सास ने कहा,''बच्चे कब के सोए हुए हैं,उन्हे जगाकर भोजन करा लो'..
बहुएं जैसे ही अपने-अपने बेंटों को जगाने गई तो उन्होंने उन्हें मृतप्रायः पाया. ऐसा बहुओं की करतूतों के फलस्वरुप शीतला माता के प्रकोप से हुआ था. बहुएं विवश हो गई. सास ने घटना जानी तो बहुओं से झगडने लगी. सास बोली कि तुम दोनों ने अपने बेटों की बदौलत शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए अपने घर से निकल जाओ और बेटों को जिन्दा-स्वस्थ लेकर ही घर में पैर रखना.
अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकल पड़ी. जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया. यह खेजडी का वृक्ष था. इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं. दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थीं. बहुओं ने थकान का अनुभव भी किया था. दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई. उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली. जूँओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया. कहा,'तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल ठंडा किया है,वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले.
दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं,परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं है. शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो,दुष्ट हो,दूराचारिनी हो,तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है. शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था.
यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया. देवरानी-जेठानी ने दोनों माताओं का वंदन किया. गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं. अनजाने में गरम खा लिया था. आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं. आप हम दोनों को क्षमा करें. पुनः ऐसा दुष्कृत्य हम कभी नहीं करेंगी.
उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर दोनों माताएं प्रसन्न हुईं. शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया. बहुएं तब बच्चों के साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आई. गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे. दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव प्रवेश करवाया. बहुओं ने कहा,'हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी.
चैत्र मही ने में शीतला सप्तमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगी. शीतला माता ने बहुओं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब पर करें. श्री शीतला मां सदा हमें शांति,शीतलता तथा आरोग्य दें।
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