2020-12-25 07:50
नापासर टाइम्स। मोक्षदा एकादशी व्रत 25 दिसंबर को रखा जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, अगहन (मार्गशीर्ष) माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मोक्षदा एकादशी से आशय मोह को नाश करने वाली एकादशी से है। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला दूसरा कोई भी व्रत नहीं है। आइए जानते हैं एकादशी व्रत विधि, महत्व और व्रत कथा।
*मोक्षदा एकादशी व्रत मुहूर्त*
एकादशी तिथि प्रारंभ: 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक
*मोक्षदा एकादशी व्रत विधि*
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
स्नानादि से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें।
पूरे घर में गंगाजल छिड़कें।
पूजाघर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं।
उन्हें वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद रोली और अक्षत से तिलक करें।
फूलों से भगवान का श्रृंगार करें।
भगवान को फल और मेवे का भोग लगाएं।
सबसे पहले भगवान गणपति और फिर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की आरती करें।
भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें।
*भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का ज्ञान*
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था। अत: इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था। श्रीमद् भागवत गीता एक महान ग्रन्थ है। भागवत गीता के पढ़ने से अज्ञानता दूर होती है। मनुष्य का मन आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है। इसके पठन-पाठन और श्रवण से जीवन को एक नई प्रेरणा मिलती है।
*मोक्षदा एकादशी की कथा*
एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं। अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा। प्रात: उठकर राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न के बारे पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा कि, हे राजन्! यहां से कुछ ही दूरी में वर्तमान, भूत, भविष्य के ज्ञाता पर्वत नाम के एक ऋषि का आश्रम है। आप वहां जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछा लिजिए। राजा ने ऐसा ही किया।
जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी तो वे एक मुहूर्त के लिए नेत्र बन्द किए। उन्होंने कहा कि- हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है। अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण कर दो, तो उनकी मुक्ति हो सकती है। राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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