2021-02-17 07:39
नापासर टाइम्स।आचार्य चाणक्य एक महान विद्वान थे। उन्होंने चाणक्य नीति शास्त्र में अपने अनुभवों और विचारों को नीतियों के रूप में संकलित किया है। यदि मनुष्य चाणक्य नीतियों का पालन अपने वास्तविक जीवन पर कर ले तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। इसमें न केवल व्यक्ति बल्कि समाज कल्याण के लिए बहुमूल्य बातें हैं। चाणक्य नीति के एक श्लोक में आचार्य चाणक्य ने चार चीजों को सबसे श्रेष्ठ माना है। ये श्लोक इस प्रकार है -
नात्रोदक समं दानं न तिथि द्वादशी समा।
न गायत्र्या: परो मंत्रो न मातुदेवतं परम्।।
*अन्नदान*
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि अन्न जल से बड़ा कोई दूसरा दान नहीं है। चाणक्य के अनुसार, जो व्यक्ति भूखे को खाना खिलाता है, प्यासे को पानी पिलाता है वह पुण्य आत्मा है। ऐसे व्यक्ति पर सदैव ईश्वरीय कृपा बनी रहती है। शरीर धर्म का पालन अन्न से है। देवतागण भी अन्न का भोग लगाकर प्रसन्न होते हैं। इस कारण लोगों को समय-समय पर अन्न का दान अवश्य ही करना चाहिए।
*द्वादशी तिथि*
इसी प्रकार चाणक्य नीति के श्लोक में दूसरी चीज जो परम है वह द्वादशी तिथि है। दरअसल द्वादशी तिथि के दिन ही एकादशी व्रत का पारण किया जाता है। चाणक्य के अनुसार तिथियों में द्वादशी के समान दूसरी कोई तिथि नहीं है। इस दिन एकादशी व्रत का पारण करने से भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जातक को वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।
*गायत्री मंत्र*
वहीं चाणक्य ने मंत्रों में गायत्री मंत्र को सबसे श्रेष्ठ मंत्र बताया है। इस मंत्र के समान दूसरा और कोई मंत्र नहीं है। धार्मिक मान्यता है कि मां गायत्री चारों वेदों की जननी हैं। हिन्दू धर्म के चारों वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद अथर्वेद और सामवेद की उत्पत्ति मां गायत्री से हुई है.
*माता*
आचार्य चाणक्य ने माता को दुनिया को चौथी सबसे कीमती माना है। चाणक्य के अनुसार, मां के समान कोई नहीं है। स्वयं भगवान राम ने माता को स्वर्ग से भी महान बताया था। मां की सेवा करना एक बालक का परम धर्म होना चाहिए। मां का भूल से भी अनादर नहीं करना चाहिए।
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