2022-04-04 07:11
हिंदू पंचाग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर पर्व मनाया जाता है. ये पर्व मुख्य रूप से राजस्थान में मनाया जाता है. आपको बता दें कि गणगौर की शुरुआत होली के दूसरे दिन से होती है और यह अगले सोलह दिनों तक मनाया जाता है. वहीं गणगौर चैत्र शुक्ल की तृतीया को संपूर्ण होता है. ऐसे में आज चैत्र शुक्ल की तृतीया तिथि है और आज गणगौर तीज मनाई जा रही है. इस दिन शादीशुदा सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सैभाग्य के लिए व्रत रखती हैं. गणगौर तीज को सौभाग्य तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. गणगौर तीज के एक दिन पहले कुंवारी और नवविवाहित महिलाएं पूजी हुई गणगौर को नदी, तालाब या सरोवर में पानी पिलाती हैं. इसके बाद दूसरे दिन शाम के समय गणगौर का विसर्जन किया जाता है. मनचाहा वर पाने के लिए गणगौर का व्रत कुंवारी लड़कियां भी रखती हैं. शादीशुदा सुहागिन महिलाएं इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं.
*ईसर-गौर की होती है पूजा*
हिंदू पंचांग के अनुसार गणगौर तीज के दिन ईसर देव यानी भगवान शिव और माता गौरी की पूजा की जाती है. गणगौर के व्रत के दिन शुद्ध, साफ मिट्टी से भगवान शिव और माता गौरी की आकृतियां बनाई जाती हैं. इसके बाद इन्हें अच्छे से सजाया जाता है और इनकी विधि विधान से पूजा की जाती है. गणगौर के आखिरी दिन इनका विसर्जन कर दिया जाता है.
*गणगौर तीज का शुभ मुहूर्त*
गणगौर का व्रत उदयातिथि के अनुसार रखा जाता है.तृतीया तिथि आरंभ- 3 अप्रैल 2022 (रविवार) दोपहर 12:38 बजे सेतृतीया तिथि समाप्त समय- 4 अप्रैल 2022 (सोमवार) दोपहर 01:54 बजे परउदयातिथि- 4 अप्रैल को होने के कारण व्रत 4 अप्रैल को रखा जाएगा.
*गणगौर तीज की पूजा विधि*
कहते हैं कि गणगौर तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने सभी प्राणियों को सौभाग्य का वरदान दिया था. इसलिए इस दिन शादीशुदा सुहागिन महिलाएं व्रत से पहले मिट्टी से भगवान शिव और मां पार्वती की स्थापना करती हैं और फिर उनकी पूजा की जाती है. मिट्टी की मां गौरी और शिव जी स्थापित करने के लिए घर के किसी पवित्र कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लंबी वर्गाकार वेदी बनाई जाती है. इस पर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर लगाया जाता है. इसके बाद बालू से मां गौरी बनाई जाती है और फिर इस पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, महावर, सिन्दूर, रोली, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल अर्पित करें.
पूजा के समय मां गौरी की व्रत कथा जरूर सुनें. अक्षत, चंदन, धूप-दीप से मां की पूजा करें. मां पार्वती को सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. कथा के बाद मां को अर्पित किए सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं. गणगौर की पूजा दोपहर में की जाती है. इसके बाद दिन में एक बार ही भोजन किया जाता है और व्रत का पारण किया जाता है. मान्यता है कि गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है.
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